परिंदा
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चलेंगे इसी पथ पर |
अड़चनों से जूझ कर वीरानियों मे
जिंदगी की भींड मे तन्हाइयों मे
चीरकर तम का कलेजा
आग मे जलकर, नगों को लांघकर
चलेंगे इसी पथ पर |
हम अचल हैं रोकते रुकते नहीं
कट हीं जाएँ सिर मगर झुकते नहीं
तम अगर है ज्योति भी कुछ कम नहीं
डर पड़ें ललकार से वो हम नहीं
बेधड़क बढ़ते चलेंगे आग मे भी
तीर सा चिंगारियों को भेदकर
चलेंगे इसी पथ पर |
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